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प्रोडक्ट के फर्जी रिव्यू करने वालों हो जाओ सावधान


भारत सरकार फर्जी प्रोडक्ट रिव्यू करने वालों पर नकेल कसने के लिए ई-कॉमर्स कंपनियों के संग बैठक करने जा रही है। आजकल ई-कॉमर्स वेबसाइट्स पर फर्जी रिव्यु काफी ज्यादा होने लगे हैं। रिव्यू देखने वाले ग्राहक यह नहीं जानते कि जो व्यक्ति प्रोडक्ट का रिव्यू कर रहा है क्या उसने प्रोडक्ट का इस्तेमाल किया होगा?



फर्जी रिव्यू पर विचार विमर्श


केंद्र सरकार कि ऐसे फर्जी रिव्यू पर नजर पड़ गई है। केंद्र सरकार इस संबंध में ई-कॉमर्स कंपनियों संग मीटिंग करने जा रही है। भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) और उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय एक साथ मिलकर जितने भी ई-कॉमर्स कंपनियों के हित धारक है उनके संग फर्जी रिव्यु से पड़ने वाले प्रभाव के ऊपर विचार-विमर्श करेंगे।



उपभोक्ता मामलों मंत्रालय के सचिव रोहित कुमार सिंह ने फर्जी रिव्यु के मामलों के संबंध में सभी ई-कॉमर्स कंपनियों को लिखा है जिसमें फ्लिपकार्ट, ऐमेज़ॉन, टाटा संस, रिलायंस रिटेल जैसी नामी ई-कॉमर्स कंपनियां शामिल हैं।



ऑनलाइन फर्जी रिव्यु के द्वारा पड़ने वाला असर


मंत्रालय ने संदेश में कहा की मीटिंग का मकसद फर्जी रिव्यु के द्वारा उपभोक्ताओं को गलत जानकारी देने से होने वाले असर को देखना है। फर्जी रिव्यू से ग्राहकों पर कैसा असर पड़ता है और वह जिस प्रोडक्ट का रिव्यू कर रहे हैं क्या वह उसका इस्तेमाल करते हैं, फर्जी रिव्यू से उपभोक्ताओं पर पड़ने वाले गलत असर के कारण इस तरह की गड़बड़ियों को किस तरह ठीक किया जाए उस पर विचार विमर्श करना है।




ऑनलाइन रिव्यू की स्क्रीनिंग में 223 बड़ी वेबसाइट


उपभोक्ता मामलों के सचिव ने सभी स्टेकहोल्डर्स के साथ यूरोपीय यूनियन में 223 बड़ी वेबसाइटों पर होने वाले ऑनलाइन रिव्यू की स्क्रीनिंग रिपोर्ट साझा की। ऑनलाइन रिव्यु स्क्रीनिंग से पता लगा कि लगभग 55 पर्सेंट वेबसाइट्स EU के निर्देशों का उल्लंघन करती है।


अधिकतर ऑनलाइन सामान खरीदने वाले उपभोक्ता सामान का रिव्यू देखकर या तस्वीर देख कर ऑर्डर करते हैं, उपभोक्ता किसी प्रोडक्ट को छू कर तो देखते नहीं जैसा कि ऑफलाइन दुकानों पर देख सकते हैं। अधिकांशत उपभोक्ता रिव्यू को देखकर ही विश्वास कर लेते हैं की प्रोडक्ट अच्छा है। किंतु कई बार रिव्यु के आधार पर खरीदा गया सामान कसौटी पर खरा नहीं उतरता।



ऑनलाइन प्रोडक्ट रिव्यू सही है या नहीं


ऑनलाइन स्क्रीनिंग में अधिकारियों ने देखा कि 223 में से 144 वेबसाइटों पर ट्रेडर्स ने इस बात का पता लगाया ही नहीं की उनकी वेबसाइट पर जो भी प्रोडक्ट रिव्यू पोस्ट किए जा रहे हैं वह कितने ठीक हैं। रिव्यू करने वाले ने उसका इस्तेमाल किया है या नहीं।


इस तरह फर्जी ऑनलाइन प्रोडक्ट रिव्यू कंज्यूमर प्रोटक्शन एक्ट 2019 मैं दिए गए राइट टु बी इनफॉर्म्ड के अधिकार का हनन करते हैं।




मैंने यह खबर आज सुबह अखबार में पढ़ी तो दिल खुश हो गया कि चलो अब फर्जी रिव्यू पर नकेल कस जाएगी। मैं तो कहता हूं फर्जी विज्ञापनों पर भी रोक लगनी चाहिए। लेकिन आज के इस डिजिटल युग में इतने ज्यादा एक ही प्रोडक्ट के अलग-अलग रिव्यू है कि उपभोक्ता समझ नहीं पाता की प्रोडक्ट सही है या नहीं, उपभोक्ता को यह पता लगाने के लिए उस प्रोडक्ट को खरीदना ही पड़ता है। यहीं से यह कमजोर कड़ी शायद रिव्यु करवाने वाली कंपनियों को पता है। अगर फर्जी रिव्यू पर रोक लग जाती है तो शायद कुछ समस्या कम हो जाए।

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