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राजस्थान में अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है
भारत में अक्षय तृतीया (Akshaya tritiya) का बहुत महत्व है। पौराणिक ग्रंथों में मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन जो भी कार्य किया जाता है उन सब का अक्षय फल या शुभ फल जरूर मिलता है। राजस्थान में अक्षय तृतीया को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। वैशाख महीने में शुक्ल पक्ष को ही अक्षय तृतीया कहते हैं। पूरे साल में जितने महीने होते हैं उनमें शुक्ल पक्ष तृतीया होती है किंतु वैशाख माह मैं शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को स्वयं सिद्ध मुहूर्त में मान्यता दी गई है। पौराणिक मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन बिना पंचांग के भी शुभ मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं। जैसे शादी, गृह प्रवेश करना हो, नए कपड़े और जेवर खरीदने हो, मकान खरीदना हो, गाड़ी खरीदनी हो इत्यादि।
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अक्षय तृतीया के दिन बिना कोई मुहूर्त के कर सकते हैं ऐसी मान्यता है
शुभ कार्य पंचांग देख कर करते हैं वही काम हम अक्षय तृतीया (Akshaya tritiya) के दिन बिना कोई मुहूर्त के कर सकते हैं ऐसी मान्यता है। इस दिन आपको कोई नई संस्था बनानी हो या फिर कोई सामाजिक कार्य करना हो या किसी दुकान का उद्घाटन वगैरा करना हो तो वह कार्य इस दिन सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पितरों को किया गया तर्पण एवं पिंडदान अक्षय फल देता है। इस दिन निर्धन व्यक्तियों को दान देने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करके भगवत पूजा करनी चाहिए इससे समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना चाहिए
संयोगवश यदि सोमवार के दिन और रोहिणी नक्षत्र के दिन अक्षय तृतीया आती है तो इस दिन किए गए दान, दक्षिणा हवन जप-तप का फल बहुत ही शुभ मिलता है। मान्यता है कि यह तिथि यदि तृतीय मध्यान्ह से पहले शुरू होकर प्रदोष काल तक रहे तो बहुत ही उत्तम मानी जाती है। माना जाता है कि इस दिन सच्चे मन से की गई प्रार्थना और अपराधों के प्रति क्षमा मांगने से भगवान उनके अपराधों को क्षमा कर देते हैं और उनको सद्गुण प्रदान करते हैं। इसलिए इस दिन मनुष्य अपने दुष्कर्म की क्षमा मांगते हैं और प्रार्थना करते हैं कि उनके अंदर सद्गुण आ जाए। अक्षय तृतीया के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाना चाहिए और गंगा स्नान करने के पश्चात भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की सच्चे मन से और विधि विधान से पूजा और प्रार्थना करनी चाहिए। पूजा में सफेद गुलाब या पीले गुलाब और नहीं तो सफेद कमल के फूल जरूर शामिल करने चाहिए । पूजा में जौ, जौ अगर नहीं मिलते हैं तो गेहूं का सत्तू चने की दाल और ककड़ी को अर्पित करना चाहिए। पूजा करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवाते है और बर्तन, फल-फूल और वस्त्रों आदि का दान दिया जाता है।
अक्षय तृतीया के दिन दिया गया दान या तो स्वर्ग में प्राप्त हो जाएगा
अक्षय तृतीया (Akshaya tritiya) के दिन भोजन में सत्तू अवश्य खाना चाहिए और नए वस्त्रों के साथ-साथ गहने इत्यादि भी जरूर पहनने चाहिए। दान में गाय, जमीन, सोने का कोई पात्र इत्यादि दिया जाता है। अक्षय तृतीया की तिथि के दिन बसंत ऋतु का समापन होता है और ग्रीष्म ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है इसलिए इस दिन दान में ग्रीष्म ऋतु से संबंधित जल से भरे हुए घड़े, खरबूजा, इमली सत्तू इत्यादि जो भी गर्मियों में खाया पिया जाता है दान में देना पुण्य कार्य माना जाता है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन दिया गया दान या तो स्वर्ग में प्राप्त हो जाएगा या फिर अगले जन्म में प्राप्त हो जाएगी।
अक्षय तृतीया के दिन ही बद्रीनाथ जी की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है
अक्षय तृतीया की तिथि को युगादि तिथियों में गणना होती है ऐसा भविष्य पुराण के अनुसार है। पुराणों के अनुसार इस दिन को ही सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था। इसी दिन भगवान विष्णु ने नर नारायण का रूप धारण किया था। परशुराम जी का अवतार भी इसी तिथि को माना जाता है। ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का आविर्भाव भी इसी दिन हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन ही बद्रीनाथ जी की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है और लक्ष्मी नारायण के दर्शन भी किए जाते हैं। बद्रीनाथ जी के कपाट भी अक्षय तृतीया के दिन ही दोबारा खुलते हैं। वृंदावन में श्री बांके बिहारी जी का मंदिर है और बांके बिहारी जी को पूरे वर्ष वस्त्रों से ढंका रहना पड़ता है किंतु अक्षय तृतीया के दिन श्री विग्रह के चरणों के दर्शन प्राप्त होते हैं। महाभारत के युद्ध की समाप्ति भी अक्षय तृतीया के दिन हुई थी। मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग का समापन भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था।
अक्षय तृतीया की कई प्रचलित कथाएं हैं जो अगले आर्टिकल में आप पढ़ सकते हैं।
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