Akshaya tritiya tuesday 3 may 2022 in india today muhurat

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अक्षय तृतीया का आज का शुभ मुहूर्त 

Akshaya tritiyaअक्षय तृतीया का आज का शुभ मुहूर्त 3 मई 2022, अक्षय तृतीया 3 मई 2022 को शुभ मुहूर्त सुबह 5:19 से शुरू हो जाएगा और अक्षय तृतीया का शुभ मुहूर्त 4 मई को 7:33 तक रहेगा। अक्षय तृतीया के दिन रोहिणी नक्षत्र सुबह 12:00 बजे कर 34 मिनट से शुरू हो जाएगा और सुबह 4 मई 3:18 तक रहेगा।

धर्मदास नामक एक वैश्य था। वह बड़ा सदाचारी था

Akshaya tritiya : अक्षय तृतीया की प्राचीन काल से कई कथाएं और व्रत प्रचलित है। इनमें से ही एक कथा इस प्रकार है धर्मदास नामक एक वैश्य था। वह बड़ा सदाचारी था, देवताओं और ब्राह्मणों मैं उसकी काफी श्रद्धा थी। धर्मदास ने जब इस व्रत की महिमा सुनी तो उसने अक्षय तृतीया के दिन गंगा में स्नान करके पूरी श्रद्धा भाव से भगवान की पूजा की, धर्मदास ने ब्राह्मणों को वस्त्र, स्वर्ण एवं दिव्य वस्तुएं दान में दी। धर्मदास जब वृद्ध हो गया तब भी उसने अक्षय तृतीया के दिन उपवास करना और धर्म कर्म एवं दान पुण्य करना नहीं छोड़ा। दूसरे जन्म में यही वैश्य कुशावती का राजा बना। इस जन्म में भी उसने अक्षय तृतीया के दिन व्रत करना और दान पुण्य करना जारी रखा, उन्होंने अपनी श्रद्धा और भक्ति का कभी घमंड नहीं करा, इस कारण वह बहुत ही प्रतापी और धनी राजा बने। कथा के अनुसार वह इतने प्रतापी राजा थे कि त्रिदेव भी अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेश धारण करके उनके द्वारा कराए जा रहे महायज्ञ में शामिल हो जाते थे। इतना महान प्रतापी और वैभवशाली राजा होने के बावजूद उन्होंने अपने धर्म मार्ग को कभी नहीं छोड़ा। मान्यता है कि चंद्रगुप्त के रूप में यही राजा पैदा हुआ था। 



इस दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है

Akshaya tritiya tuesday 3 may 2022 : अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जयंती बहुत ही धूमधाम से मनाई जाती है। स्कंद पुराण एवं भविष्य पुराण के अनुसार वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को भगवान विष्णु ने ही रेणुका के गर्भ से परशुराम का जन्म लिया था। कोंकण और चिपलुन में परशुराम के मंदिर है जहां परशुराम जयंती अक्षय तृतीया के दिन बहुत उल्लास एवं श्रद्धा पूर्वक मनाई जाती है। इसलिए इस दिन परशुराम जयंती मनाई जाती है और परशुराम के आविर्भाव की कथा का वंचन होता है। कथा के अनुसार जब विश्वामित्र की माता और परशुराम की माता ने पूजा कर ली उसके बाद जब वह प्रसाद ग्रहण कर रही थी, तब ऋषि ने प्रसाद अदला बदली कर दिया जो प्रसाद विश्वामित्र की माता को देना था वह परशुराम की माता को दे दिया, प्रसाद के प्रभाव से परशुराम पैदा तो ब्राह्मण हुए थे किंतु उनका स्वभाव क्षत्रियों का था। उधर विश्वामित्र की माता का पुत्र क्षत्रिय होने के बावजूद भी ब्रह्म ऋषि कहलाए। मान्यता है कि राम सीता का स्वयंवर होने के पश्चात परशुराम जी ने राम को अपना धनुष बाण समर्पित कर दिया था और वह सन्यासी का जीवन बिताने के लिए अन्यत्र चले गए थे। किंतु वह अपने साथ फरसा जरूर रखते थे इसलिए उनका नाम परशुराम पड़ गया था। अक्षय तृतीया के दिन परशुराम जी की पूजा की जाती है और उन्हें अरध्ये दिया जाता है। 



कुंवारी कन्या गौरी माता की पूजा करती है

Akshaya tritiya : इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियों और कुंवारी कन्या गौरी माता की पूजा करती है तत्पश्चात फल एवं मिठाई के साथ भीगे हुए चने बांटती है। माता गोरी यानी की पार्वती की पूजा करके मिट्टी के बने हुए कलश या फिर धातु से बने हुए कलश में जल भरकर अन्न, तिल, फूल, फल का दान करती है। 



ऋषभदेव आदिनाथ प्रभु  का संसार में सत्य व अहिंसा का प्रसार 

अक्षय तृतीया का जैन धर्म में काफी मान्यता है और यह जैनियों का भी महान धार्मिक पर्व है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थ कार श्री ऋषभदेव भगवान थे। मान्यता है कि भगवान ऋषभदेव ने 1 वर्ष तक कड़ी तपस्या की उसके पश्चात गन्ने का रस ग्रहण किया। अक्षय तृतीया के दिन ही जैन धर्म के प्रथम तीरथ कर श्री आदिनाथ भगवान ने संसार में सत्य व अहिंसा का प्रसार करने के लिए और अपने कर्म बंधनों से मुक्त होने के लिए उन्होंने पारिवारिक सुख सुविधाओं को त्याग दिया और जैन वैराग्य ग्रहण कर लिया। ऋषभदेव आदिनाथ प्रभु एक दिन सत्य और अहिंसा का प्रचार करते हुए हस्तिनापुर या गजपुर आ गए। इस राज्य में इनके  पौत्र सोमयश का साम्राज्य था। जैसे यह समाचार हस्तिनापुर में फेला की आदिनाथ भगवान आए हैं तो पूरा नगर उनके दर्शन करने के लिए उमड़ पड़ा। सोमयश के पुत्र राजकुमार श्रेयांश ने जब उन्हें देखा तो पहचान गए कि यह आदिनाथ भगवान ऋषभदेव है, उन्होंने आदिनाथ को आहार के रूप में गन्ने का रस भेंट किया। जैन धर्मावलंबियों में मान्यता है कि गन्ने के रस ही इक्षुरस है इसलिए इस दिन को इक्षु तृतीया कहते हैं और आगे चलकर यही नाम अक्षय तृतीया के नाम से मशहूर हो गया। 



जैन धर्म में इसे वर्षीतप कहा जाता है

Akshaya tritiya : आदिनाथ भगवान श्री ऋषभदेव ने तपस्या 1 साल से ज्यादा यानी कि 400 दिन की की थी। यह तपस्या 1 साल से ज्यादा की थी इस कारण जैन धर्म में इसे वर्षीतप कहा जाता है। जैन धर्म के अनुयाई आज भी वर्षीतप की आराधना करते हैं और अपने को धन्य मानते हैं। वर्षीतप प्रति वर्ष कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी से शुरू हो जाती है और दूसरे साल वैशाख के महीने मैं शुक्ल पक्ष कि अक्षय तृतीया के दिन पारायण करके समाप्त की जाती है। 



ऐसी तपस्या से जीवन में संयम और मन शांत रहता है

Akshaya tritiya : जो भी इस तपस्या को करता है उसे इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि हर महीने की चौदस को उपवास जरूर किया जाना चाहिए। इस तरह वर्षीतप तकरीबन 13 महीने और 10 दिन का होता है। इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इस उपवास में केवल गर्म पानी का ही सेवन हो। भारत में आज भी जो आरोग्य जीवन बिताना चाहते हैं उनके लिए तो यह बहुत ही उपयोगी है। धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो यह तपस्या बहुत ही महत्वपूर्ण है। जो आरोग्य जीवन बिताना चाहते हैं उनके लिए तो यह बहुत ही उपयोगी है। ऐसी तपस्या से जीवन में संयम और मन शांत रहता है विचारों में शुद्धि आती है धार्मिक प्रतियों में रुचि होती है और अच्छे कर्म करने की ओर मनुष्य अग्रसर होता है। इसलिए भी अक्षय तृतीया को जैन धर्म में बहुत ही महत्व दिया जाता है। अपने मन, वचन एवं श्रद्धा भाव से जो व्यक्ति वर्षीतप करता है उसे बहुत ही महान समझा जाता है। 



बच्चे इस दिन गुड्डे गुड़ियों का विवाह भी रचाते हैं

आज भी इस दिन शादी विवाह की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से ही होती है। आज भी घर में बड़े बुजुर्ग लोग अपने पुत्र और पुत्रियों का लग्न करना हो या कोई मांगलिक कार्य करने हो तो वह अक्षय तृतीया को ही चुनते हैं। बच्चे इस दिन गुड्डे गुड़ियों का विवाह भी रचाते हैं और वो भी पूरे रीति रिवाज के साथ। गांव में आज भी इस तरह बच्चे गुड्डे गुड़ियों का विवाह रचाकर सामाजिक व्यवहार की कार्यकुशलता को समझ जाते हैं और उसको अपनाते भी है। देखा गया है कि कहीं-कहीं तो बच्चों के साथ परिवार के लोग भी इस गुड्डे गुड़ियों के विवाह रचाने के खेल में शामिल हो जाते हैं। इसीलिए बच्चों को अक्षय तृतीया के दिन सामाजिक व सांस्कृतिक शिक्षा भी मिलती है। 



अक्षय तृतीया के दिन निकाला गया शगुन बिल्कुल सच होता है

किसान इस दिन एक जगह इकट्ठा होकर शगुन देखते हैं कि आने वाले वर्ष में कौन सी पैदावार अच्छी होगी, किसानों में ऐसा विश्वास है कि अक्षय तृतीया के दिन निकाला गया शगुन बिल्कुल सच होता है। 


भारत में कई परंपराएं हैं उनमें से राजपूत समुदाय में भी एक परंपरा है कि अक्षय तृतीया के दिन अगर शिकार पर जाते हैं तो आने वाला वर्ष सुखी होगा। 


भारत के बुंदेलखंड राज्य में अक्षय तृतीया के शुरू होने से और पूर्णिमा तक उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। इस उत्सव में कुंवारी कन्याएं अपने परिवार में पिता भाई तथा गांव के घरों में कुटुंब के लोग होते हैं उनको शगुन बांटती है एवं खुशी के गीत गाती है। 



राजस्थान में अक्षय तृतीया के दिन 7 तरह के अन्न की पूजा जरूर की जाती है

Akshaya tritiya : भारत के राज्य राजस्थान में तो अक्षय तृतीया के दिन वर्षा के आगमन का शगुन निकाला जाता है और प्रार्थना की जाती है की वर्षा अपने टाइम से जरूर हो। पूरे गांव में लड़कियां झुंड बनाकर शगुन गीत गाती है। इस दिन लड़के पतंग भी उड़ाते हैं। राजस्थान में अक्षय तृतीया के दिन 7 तरह के अन्न की पूजा जरूर की जाती है। मालवा में मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन नये घड़े के ऊपर खरबूजा और आम के पल्लव रखकर पूजा की जाए तो खेती में उनको काफी फायदा होगा और किसानों की उन्नति होगी।


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