New year 2021: Happy New year 2021
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Gudi -Padwa |
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Happy New year 2021
नया साल का उत्सव पूरी दुनिया में अलग-अलग स्थानों पर और अलग-अलग तिथियों तथा विधियों से भी मनाया जाता है। पूरे विश्व में संप्रदायों के अनुसार नया साल भिन्न भिन्न प्रकार से मनाया जाता हैं।
हिंदुओं में नववर्ष की शुरुआत गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा पर
हिंदुओं की मान्यता के अनुसार नया साल चेत्र नवरात्रि के प्रथम दिन यानी गुड़ी पड़वा पर हर साल चीनी कैलेंडर के अनुसार प्रथम चंद्र दिवस नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह प्रायः 21 जनवरी से 21 फरवरी के बीच में पड़ता है।
चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या युगादि कहा जाता है
हिंदू मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि का निर्माण किया था। ब्रह्माजी द्वारा निर्मित इस सृष्टि के प्रमुख देवी देवताओं, यक्ष राक्षस, गंधर्व, ऋषि-मुनियों, नदियों, पर्वतों, पशु पक्षियों और कीट पतंगों का ही नहीं, रोगों और उनके उपचारों तक का भी पूजन किया जाता है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है। अतः इसी तिथि को नवसंवत्सर भी कहते हैं। चैत्र के महीने में ही वृक्ष तथा लताएं पल्लवित और पुष्पित होती है। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है। जीवन का मुख्य आधार वनस्पतियों को सोमरस चंद्रमा ही प्रदान करता है। चंद्रमा को औषधियों और वनस्पतियों का राजा कहा गया है इसलिए इस दिन को वर्ष का आरंभ माना जाता है।
भारत के कुछ राज्यों आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में सारे घरों को आम के पेड़ की पत्तियों के बंदनवार से सजाया जाता है। बंदनवार समृद्धि व सुखद जीवन की अभिलाषा के साथ साथ अच्छी फसल के भी परिचायक होते हैं। उगादि के दिन ही पंचांग तैयार होता है। पंचांग की रचना गणित के महान ज्ञाता भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए करी थी। इसीलिए चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा कहा जाता है।
हिंदुओं की एक और मान्यता के अनुसार शालिवाहन नामक एक कुमार के लड़के ने मिट्टी के सैनिकों की सेना बनाई और उस मिट्टी की सेना पर पानी छिड़क कर उनमें प्राण फूंक दिए। उसने इसी सेना की मदद से शक्तिशाली शत्रुओं को भी पराजित कर दिया। तत्पश्चात विजय के प्रतीक के रूप में शालिवाहन शक का प्रारंभ हुआ। एक अलग मान्यता के अनुसार भगवान राम ने वानर राज बाली के अत्याचारी शासन से दक्षिण की प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। इसी खुशी में वहां की प्रजा ने घर-घर में उत्सव मना कर ध्वज (गुड़ियां) फहराए। महाराष्ट्र में आज भी घर के आंगन में गुड़ी खड़ी करने की प्रथा प्रचलित है। इसी दिन से इस पर्व को गुड़ीपड़वा नाम दे दिया गया।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्व
१-ब्रह्मा जी ने इसी दिन के सूर्योदय से सृष्टि की रचना की थी।
२-सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य की स्थापना की थी इसी कारण विक्रमी संवत का पहला दिन शुरू होता है।
३-अयोध्या में भगवान श्री राम के राज्याभिषेक का दिन भी यही है।
४-नवरात्र का पहला दिन यही है।
५- सिखों के द्वितीय गुरु श्री अंगद देव जी महाराज का जन्म दिवस भी इसी दिन है।
६-आर्य समाज की स्थापना भी इसी दिन स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने की थी।
७-सिंध प्रांत मैं भगवान झूलेलाल इसी दिन प्रगट हुए।
८-युधिष्ठिर का राज्य अभिषेक भी इसी दिन हुआ था।
९-डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार का जन्मदिन भी इसी दिन है। जिन्होंने संघ की स्थापना की थी।
१०-महर्षि गौतम की जयंती भी इसी दिन है।
११-वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है।
१२-फसल पकने का प्रारंभ भी इसी दिन से होता है।
१३-मांगलिक कार्य को प्रारंभ करने का यही शुभ मुहूर्त होता है।
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