Diwali mein Lakshmi Mata Ganesh ji aur Saraswati Mata ki Puja ki jaati hai
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Mata-Lakshmi |
Diwali festival me Lakshmi Pujan : लक्ष्मी माता हिंदू धर्म मैं सबसे महत्वपूर्ण देवी है। भगवान विष्णु लक्ष्मी माता के पति है। त्रिदेवियां में लक्ष्मी माता को धन संपदा, समृद्धि और शांति की देवी माना जाता है। दिवाली के दिन माता लक्ष्मी के साथ श्री गणेश जी और माता सरस्वती की भी पूजा की जाती है। ऋग्वेद के श्री सूक्त में इनका उल्लेख मिलता है।
मत्स्य पुराण के अनुसार अनेकों दीपों से लक्ष्मी माता की आरती करने को दीपावली कहते हैं।धन वैभव और यश की प्राप्ति हेतु दीपावली की रात को लक्ष्मी माता का पूजन श्रेष्ठ माना गया है। दीपावली की श्री महालक्ष्मी की पूजा में मंत्र जाप पाठ इत्यादि के लिए सबसे बढ़िया समय है अभिजीत मुहूर्त वह दोपहर में आता है। प्रदोष काल यानी कि जब दिन और रात मिलते हैं। निषिद्ध काल यानी कि रात स्थिर लग्न है। महा निषिद्ध काल यानी कि देर रात अलग-अलग मुहूर्त है।
Diwali ki Puja : दिवाली की पूजा का पहला मुहूर्त है अभिजीत मुहूर्त और लाभ की चौकड़िया यानी कि समन्वय समय।
Diwali mein Lakshmi Pujan samagri : लक्ष्मी माता के पूजन में 7 छोटे दीए, 1 बढ़ा दीया, 1 कच्चा दीया, रुई बत्ती बनाने के लिए, घी और सरसों का तेल। पूजा के लिए 2 चौकियां चाहिए सवा मीटर लाल साटन और सवा मीटर सफेद साटन का कपड़ा चाहिए।
Diwali ka Pujan : माता लक्ष्मी जी, गणेश जी और माता सरस्वती जी के कपड़े चाहिए। यज्ञोपवीत जनेऊ चाहिए और एक कलस चाहिए। दो पान के पत्ते पर चावल अक्षत के साथ सुपारी भी रखिए। केले के पत्ते भी लगा सकते हैं। नारियल चाहिए, मौली या कलावा चाहिए, लाल चंदन, सफेद चंदन, रोली, सिंदूर इसके अलावा जौं चाहिए, केसर चाहिए, भोग के लिए बतासे चाहिए, गट्टे चाहिए, मिठाई चाहिए और शंख चाहिए। इस शंख को चावल के ऊपर रखना चाहिए क्योंकि यह दक्षिणवर्ती शंख है जिसका खास महत्व है। इस शंख को रखते समय ध्यान रखना चाहिए कि इसको किसी कटोरे में या सकोरे में चावल भरकर ऐसे रखिए की पूजा में इसकी चोंच आपकी तरफ रहे।
Diwali pujan samagri : पूजा में इसके अलावा दही शहद गंगाजल दूर्वा यानी की दूब घास सफेद फूल लाल फूल गुड चीनी इलायची और पानी रखने के लिए प्रोक्षणी, तांबे की छोटी प्लेट, दो छोटे कटोरे धूपबत्ती एवं 6 कोडीया जरुर रखिएगा और अगले दिन भैया दूज के दिन इन्हें निकाल कर लाल कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी में रखिएगा जिससे समृद्धि बनी रहेगी। इनके अलावा स्टील की दो छोटी-छोटी थालियां और तांबे का लोटा और तुलसी की पत्तियां।
एक कच्चा दीया और एक पक्का दीया के पीछे कारण यह है कि जब पक्का दीया जलाओ तो उसको कच्चे दीए से इस तरह ढक दो कि दीए की लौ से निकलता धुआं उसके अंदर जम जाए, अगले दिन कच्चे दीए में काला काजल तैयार हो जाएगा जो छोटे बच्चों की आंखों में लगाया जा सकता है।
Diwali ke Pujan ki Disha : दिवाली का पूजा स्थल घर के उत्तर पूर्व दिशा या दक्षिण पूर्व दिशा में बना सकते हैं। भगवान शंकर उत्तर पूर्व दिशा के स्वामी हैं यानी कि ईशान दिशा। पूजा स्थल उत्तर या पूर्व दिशा में भी बना सकते हैं किंतु उत्तर-पूर्व दिशा सर्वोत्तम है। माता लक्ष्मी, गणेश और माता सरस्वती की पूजा में आसन का बहुत ही महत्व है। माता का आसन लाल और श्री गणेश का आसन सफेद होना चाहिए, हालांकि दोनों लाल आसन पर भी बैठ सकते हैं किंतु माता का आसन लाल और गणेश का आसन सफेद हो तो सर्वोत्तम है। लक्ष्मी गणेश की मूर्ति उत्तर-पूर्व या दक्षिण पूर्व-दिशा में रखें। माता लक्ष्मी का मुंह पश्चिम दिशा, दक्षिण पश्चिम या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। आपका मुंह पूर्व या उत्तर पूर्व मैं होना चाहिए।
Diwali ki Puja mein calas aur havan kund : दीपावली की पूजा में कलस और हवन कुंड का बड़ा महत्व होता है इसलिए इसे सही दिशा में जरूर बिठाना चाहिए। कलस को हमेशा उत्तर पूर्व के कोने में ही होना चाहिए। क्योंकि कलस जल तत्व है। कलस रखिए और उसके ऊपर दीपक में जौं रखिए, आम के पत्ते लगाइए और मोली में या कपड़े में नारियल लपेटकर इसके ऊपर रखिए।
माता श्री महालक्ष्मी को प्रिय है श्री यंत्र, श्री यंत्र पूजा स्थल में उत्तर पूर्व, दक्षिण पूर्व या उत्तर दिशा में रखना चाहिए। पूजा में श्री यंत्र जरूर रखना चाहिए। ( India TV)
महालक्ष्मी माता का मंत्र :।श्रीं हीं श्रीं कमलालये प्रसिद-प्रसिद श्रीं हीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः।
श्री गणेश जी का मंत्र : ।गं गणपतये नम:।
Diwali ; माता लक्ष्मी समुंद्र मंथन से निकली और उन्होंने भगवान विष्णु को स्वयं ही वर लिया।
जो मनुष्य गायत्री का आह्वान करते हैं वह श्रीवान बनते हैं। और उसका आनंद अकेले ना लेकर असंख्य मनुष्यों को उससे लाभान्वित करते हैं।
Lakshmi mata in Diwali : लक्ष्मी गायत्री की कृपा से मिलने वाले वरदानों में से एक है। जिस पर इनकी कृपा उतरती है वह दुर्बल, दरिद्, कृपण, एवं पिछड़ेपन और असंतुष्टि से ग्रस्त नहीं रहता है। स्वच्छता और सुव्यवस्था जिसका होता है उसको श्री कहा गया है। जहां यह सदगुण होंगे, वहां दरिद्रता और कुरूपता नहीं रहती है।
Story of lakshmi mata in diwali : मनुष्य के काम आने वाले पदार्थों को उपयोगी बनाने और ज्यादा मात्रा में उपलब्ध कराने की क्षमता को लक्ष्मी कहते हैं। प्राय: संपत्ति के लिए ही लक्ष्मी शब्द प्रयुक्त होता है। अंततः वह चेतना का ही एक भाग है। जिस व्यक्ति की चेतना जागृत है वह मनुष्य बेकार और निरूपयोगी वस्तुओं को भी उपयोग करने लायक बना देता है। यह कला जिस मनुष्य को आती है उसको लक्ष्मीवान, या श्रीमान कहते हैं। शेष धनवान व्यक्तियों को मात्र धनवान ही कहा जाता है। लक्ष्मी गायत्री की एक किरण है। इसे जो प्राप्त करता है, उसे कम साधनों में भी उनका सदुपयोग करने की कला आने के कारण सदा धनवानों जैसी प्रसंता बनी रहती है।
श्री, लक्ष्मी के लिए एक आदरणीय शब्द, पृथ्वी की मातृभूमि के रूप में संसार का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे पृथ्वी माता के रूप में जाना जाता है, और उन्हें भूदेवी एवं श्री देवी के अवतार के रूप में पहचाना जाता है।
लक्ष्मी माता जैन धर्म में भी एक महत्वपूर्ण देवी है। जैन मंदिरों में भी माता के दर्शन किए जा सकते हैं।
माता लक्ष्मी को बौद्ध धर्म में भी भाग्य की देवी कहा जाता है। बौद्ध धर्म के सबसे पुराने स्तूपों और गुफा के मंदिरों में उन्हें प्रतिस्थापित किया गया था।
किसी भी मनुष्य के पास धन की अधिकता होने से उसे सौभाग्यशाली नहीं कह सकते। उसके पास सदबुद्धि नहीं हो तो वह नशे का काम करती है। जो मनुष्य को विलासी, उद्धत, अहंकारी और दुर्व्यसनी बना देता है। ऐसे मनुष्य धन पाकर कृपण, अपव्ययी, विलासी, और अहंकारी बन जाते हैं।
उलूक को लक्ष्मी के वाहन के रूप में भी जाना जाता है। उलूक अर्थात मूर्खता। कुसंस्कारी मनुष्यों को मात्रा से अधिक धन मुर्ख ही बनाती है। वह उस धन का दुरुपयोग ही करते हैं और फल स्वरुप आहत हो जाते हैं।
माता को अष्टलक्ष्मी भी कहते हैं उनके अनेकों अनेक स्वरूप में आठवें स्वरूप को अष्टलक्ष्मी कहा जाता है।।
दो हाथी लक्ष्मी माता का अभिषेक करते हैं। कमल के पुष्प पर माता लक्ष्मी का आसन है।
कमल का पुष्प प्रतीक है कोमलता का। माता लक्ष्मी के 4 हाथ , एक मुख है। यह प्रतीक है एक लक्ष्य के दृढ़ संकल्प, दूरदर्शिता, व्यवस्था शक्ति, एवं श्रमशीलता। माता के दो हाथों में कमल सौंदर्य और प्रामाणिकता के प्रतीक है। माता दान मुद्रा में उदारता की प्रतीक है तथा आशीर्वाद मुद्रा में अभय अनुग्रह का एहसास होता है। उनका वाहन उलूक प्रतीक है निर्भीकता और रात्रि के गहन अंधेरे में भी देख पाने की क्षमता।
सुव्यवस्था में ही सुंदरता और कोमलता समाहित रहती है। इसी सत्प्रवृत्ति को कला भी कहते हैं। माता लक्ष्मी का एक नाम कमल भी है। संक्षेप में इसे ही कला कहते हैं। वस्तुओं और संपदाओं का सदुपयोग करना एवं सुनियोजित रीती से निर्वाह करना। न्याय की मर्यादा में रहकर परिश्रम एवं मनोयोग के साथ अपना कर्म करना अर्थकला के अंतर्गत आता है। जिन मनुष्य में उपार्जन करने की क्षमता एवं उसमें कुशलता होना ही श्री तत्व का प्रतीक है। सामान्यतः कुशल मनुष्य धन को सदुपयोग में ही खर्च करता है वह उस धन का अपव्यय नहीं करता।
दो गजराज माता लक्ष्मी का जल अभिषेक करने से उनका अभिप्राय है कि परिश्रम और मनोयोग का संबंध माता लक्ष्मी के साथ अटूट है। जहां यह युग्म रहेगा, वहां वैभव तो आएगा ही और श्रेय-सहयोग की कमी भी नहीं रहेगी। जिन मनुष्य में प्रतिभा होती है उन्हीं को धन संपदा और सफलता मिलती है। और उन्हें आगे बढ़ने के लिए पग पग पर अवसर मिलते रहते हैं।
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