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Trade union leaders rally for workers’ rights during Bharat Bandh 2025.
भारत बंद 2025: केंद्रीय ट्रेड यूनियनों की मांगें, मजदूर-किसान विरोधी नीतियां और कॉरपोरेट समर्थन का आरोप
परिचय
9 जुलाई 2025 को, भारत में 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगी संगठनों ने राष्ट्रव्यापी भारत बंद का आह्वान किया। इस बंद में लगभग 25 करोड़ मजदूरों, कर्मचारियों, किसानों और ग्रामीण श्रमिकों के शामिल होने का दावा किया गया है। यह हड़ताल केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ एक मजबूत विरोध प्रदर्शन है, जिन्हें यूनियनों ने मजदूर-विरोधी, किसान-विरोधी, और कॉरपोरेट-समर्थक करार दिया है। यह आंदोलन केवल एक हड़ताल नहीं, बल्कि देश के श्रमिकों और किसानों की एकजुट आवाज है, जो अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे हैं।
इस लेख में, हम भारत बंद 2025 के कारणों, ट्रेड यूनियनों की 17 सूत्री मांगों, सरकार पर लगाए गए आरोपों, और इस आंदोलन के सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि यह बंद भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज पर क्या प्रभाव डाल सकता है। यह लेख SEO के लिए अनुकूलित है, जिसमें प्रासंगिक कीवर्ड्स जैसे "भारत बंद 2025," "ट्रेड यूनियन मांगें," "मजदूर-किसान विरोधी नीतियां," और "कॉरपोरेट समर्थन" शामिल हैं, ताकि ब्लॉगर्स और पाठकों को अधिकतम जानकारी और रीच मिल सके।
Workers unite against anti-labour policies in India, 2025.
भारत बंद 2025: पृष्ठभूमि और कारण
भारत में "बंद" या राष्ट्रव्यापी हड़ताल का इतिहास लंबा रहा है। यह एक ऐसा तरीका है, जिसके माध्यम से श्रमिक संगठन और सामाजिक समूह अपनी मांगों को सरकार और जनता के सामने रखते हैं। 9 जुलाई 2025 का भारत बंद भी इसी परंपरा का हिस्सा है, जिसमें 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों—जैसे ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC), हिंद मजदूर सभा (HMS), सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स (CITU), और अन्य—ने एकजुट होकर सरकार की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई है।
इस बंद का मुख्य कारण सरकार की नीतियां हैं, जिन्हें यूनियनों ने मजदूरों और किसानों के हितों के खिलाफ बताया है। यूनियनों का कहना है कि पिछले एक दशक में सरकार ने श्रम कानूनों को कमजोर किया, निजीकरण को बढ़ावा दिया, और कॉरपोरेट हितों को प्राथमिकता दी है। इसके अलावा, किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग और कर्जमाफी जैसे मुद्दों को नजरअंदाज किया गया है।
भारत बंद का ऐतिहासिक संदर्भ
यह पहली बार नहीं है जब ट्रेड यूनियनों ने इतने बड़े पैमाने पर हड़ताल का आह्वान किया है। इससे पहले, 26 नवंबर 2020, 28-29 मार्च 2022, और 16 फरवरी 2024 को भी यूनियनों ने देशव्यापी हड़तालें की थीं। इन हड़तालों में लाखों कर्मचारी और किसान शामिल हुए थे, और इनका मुख्य उद्देश्य सरकार की श्रम-विरोधी नीतियों और विवादास्पद आर्थिक सुधारों को रद्द करने की मांग करना था।
2025 का भारत बंद इन पिछले आंदोलनों से अलग है, क्योंकि इस बार इसे विपक्षी दलों और संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) जैसे संगठनों का व्यापक समर्थन प्राप्त है। यह समर्थन इसे और भी प्रभावी बनाता है, खासकर ग्रामीण भारत में, जहां किसान और खेत मजदूर भी इस आंदोलन में शामिल हैं।
ट्रेड यूनियनों की 17 सूत्री मांगें
केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार को 17 सूत्री मांगों का एक चार्टर सौंपा था, जिसे सरकार ने कथित तौर पर नजरअंदाज किया है। इन मांगों का उद्देश्य मजदूरों, किसानों, और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के हितों की रक्षा करना है। नीचे इन मांगों का विस्तृत विवरण दिया गया है:
1. चार श्रम संहिताओं (Labour Codes) को रद्द करना
2020 में केंद्र सरकार ने 44 पुराने श्रम कानूनों को खत्म कर चार नए श्रम संहिताएं (Labour Codes) लागू कीं:
Code on Wages, 2019
Industrial Relations Code, 2020
Social Security Code, 2020
Occupational Safety, Health and Working Conditions Code, 2020
यूनियनों का कहना है कि ये संहिताएं मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को कमजोर करती हैं, काम के घंटों को बढ़ाती हैं, और नियोक्ताओं को सजा से बचाने में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, औद्योगिक संबंध संहिता में हड़ताल करने के लिए पहले से अनुमति लेने की शर्तें और कठिन प्रक्रियाएं शामिल हैं, जो मजदूरों के लिए आंदोलन को मुश्किल बनाती हैं।
2. न्यूनतम वेतन ₹26,000 प्रति माह
यूनियनों ने सभी श्रमिकों के लिए न्यूनतम वेतन ₹26,000 प्रति माह तय करने की मांग की है। उनका कहना है कि मौजूदा न्यूनतम वेतन महंगाई और जीवन-यापन की लागत के अनुरूप नहीं है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों को विशेष रूप से कम वेतन का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति बदतर हो रही है।
3. पुरानी पेंशन योजना (OPS) की बहाली
नई पेंशन योजना (NPS) के तहत कर्मचारियों को मिलने वाली पेंशन राशि अनिश्चित और बाजार पर निर्भर है। यूनियनों ने मांग की है कि पुरानी पेंशन योजना (OPS) को बहाल किया जाए, जो कर्मचारियों को निश्चित और सम्मानजनक पेंशन प्रदान करती थी।
4. निजीकरण और ठेकाकरण पर रोक
यूनियनों ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) के निजीकरण और ठेकाकरण पर रोक लगाने की मांग की है। उनका कहना है कि बिजली, रेलवे, बैंकिंग, डाक, और कोयला खनन जैसे क्षेत्रों में निजीकरण से नौकरी की सुरक्षा, वेतन, और स्थायित्व खतरे में पड़ गया है। उदाहरण के लिए, बिजली वितरण और उत्पादन को निजी हाथों में देने से कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में हैं।
5. इंडियन लेबर कॉन्फ्रेंस (ILC) का आयोजन
इंडियन लेबर कॉन्फ्रेंस (ILC) एक त्रिपक्षीय निकाय है, जिसमें सरकार, नियोक्ता, और श्रमिक प्रतिनिधि शामिल होते हैं। यूनियनों का आरोप है कि पिछले 10 वर्षों में सरकार ने इस सम्मेलन को आयोजित नहीं किया, जिससे मजदूरों की मांगों पर चर्चा का कोई मंच नहीं बचा।
6. मनरेगा की मजदूरी और कार्यदिवस बढ़ाना
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत ग्रामीण मजदूरों को 100 दिन का रोजगार और न्यूनतम मजदूरी प्रदान की जाती है। यूनियनों ने मांग की है कि मनरेगा की मजदूरी को बढ़ाया जाए और कार्यदिवसों की संख्या को 200 किया जाए।
7. शहरी बेरोजगारों के लिए रोजगार योजना
यूनियनों ने शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारों के लिए एक विशेष रोजगार गारंटी योजना शुरू करने की मांग की है, ताकि शहरी गरीबों को भी रोजगार का अवसर मिल सके।
8. शिक्षा, स्वास्थ्य, और राशन पर सरकारी खर्च बढ़ाना
सामाजिक क्षेत्रों में खर्च में कटौती के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) कमजोर हुई है। यूनियनों ने मांग की है कि सरकार इन क्षेत्रों में निवेश बढ़ाए ताकि गरीब और मध्यम वर्ग को बेहतर सुविधाएं मिल सकें।
9. एमएसपी की कानूनी गारंटी और कर्जमाफी
किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी और कृषि ऋण माफी यूनियनों और संयुक्त किसान मोर्चा की प्रमुख मांगें हैं। उनका कहना है कि सरकार की नीतियां किसानों को हाशिए पर धकेल रही हैं, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था संकट में है।
10. ठेका प्रथा का अंत
ठेका प्रथा (Contract Labour System) के कारण मजदूरों को स्थायी नौकरियों, सामाजिक सुरक्षा, और उचित वेतन से वंचित होना पड़ता है। यूनियनों ने इस प्रथा को समाप्त करने की मांग की है।
11. 41 डिफेंस ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों के निगमीकरण को रद्द करना
रक्षा क्षेत्र में 41 ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों के निगमीकरण का विरोध करते हुए, यूनियनों ने इसे रद्द करने की मांग की है, क्योंकि यह कर्मचारियों की नौकरी सुरक्षा को प्रभावित करता है।
12. निर्माण मजदूरों के लिए कल्याण कोष का उपयोग
निर्माण मजदूरों के कल्याण के लिए जमा किए गए 38,000 करोड़ रुपये के कोष को तुरंत जारी करने की मांग की गई है, ताकि मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा और अन्य लाभ मिल सकें।
13. सीवर सफाई मजदूरों के लिए ठोस नीतियां
सीवर सफाई जैसे खतरनाक कामों में लगे मजदूरों की सुरक्षा और कल्याण के लिए ठोस नीतियों की मांग की गई है।
14. हड़ताल के अधिकार की सुरक्षा
यूनियनों ने मांग की है कि मजदूरों के हड़ताल करने के अधिकार को संरक्षित किया जाए, क्योंकि यह उनका संवैधानिक और लोकतांत्रिक अधिकार है।
15. सार्वजनिक क्षेत्र में भर्ती शुरू करना
सार्वजनिक क्षेत्र में रिक्त पदों को भरने और नई भर्तियों को शुरू करने की मांग की गई है, ताकि बेरोजगारी को कम किया जा सके।
16. ऑक्यूपेशनल सेफ्टी और हेल्थ स्टैंडर्ड्स
सभी फैक्ट्रियों में ऑक्यूपेशनल सेफ्टी और हेल्थ के तहत नियमित जांच शुरू करने की मांग की गई है, ताकि मजदूरों के लिए सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित हो।
17. संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग बंद करना
यूनियनों का आरोप है कि सरकार ने संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर जन आंदोलनों को दबाने की कोशिश की है। वे मांग करते हैं कि ऐसी प्रथाओं को रोका जाए।
सरकार पर मजदूर-विरोधी और किसान-विरोधी नीतियों के आरोप
ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों ने केंद्र सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख आरोप निम्नलिखित हैं:
1. श्रम कानूनों का कमजोर होना
नए श्रम संहिताओं के लागू होने से मजदूरों के अधिकारों को कमजोर करने का आरोप है। उदाहरण के लिए, Industrial Relations Code में हड़ताल करने के लिए पहले से अनुमति लेने की शर्तें और Code on Wages में न्यूनतम वेतन की अपर्याप्तता ने मजदूरों की स्थिति को और खराब किया है।
2. निजीकरण का बढ़ता दायरा
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों जैसे भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL), रेलवे, बिजली कंपनियों, और रक्षा क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा देने से कर्मचारियों की नौकरियां खतरे में पड़ गई हैं। यूनियनों का कहना है कि यह निजीकरण देश की संपत्ति को कॉरपोरेट घरानों जैसे अडानी और अंबानी को सौंपने का प्रयास है।
3. किसानों की उपेक्षा
किसानों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग और कृषि ऋण माफी को नजरअंदाज करने का आरोप सरकार पर लगाया गया है। संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि सरकार की नीतियां किसानों को हाशिए पर धकेल रही हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रही हैं।
4. सामाजिक क्षेत्रों में कटौती
शिक्षा, स्वास्थ्य, और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) जैसे सामाजिक क्षेत्रों में सरकारी खर्च में कटौती ने गरीब और मध्यम वर्ग की स्थिति को और बदतर किया है।
5. बेरोजगारी और मजदूरी में गिरावट
यूनियनों का कहना है कि सरकार की नीतियों के कारण बेरोजगारी बढ़ी है और मजदूरी में गिरावट आई है। असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को विशेष रूप से कम वेतन और असुरक्षित कार्यस्थलों का सामना करना पड़ रहा है।
6. कॉरपोरेट समर्थन
यूनियनों ने सरकार पर कॉरपोरेट समर्थक नीतियां अपनाने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सरकार की नीतियां बड़े कॉरपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई जा रही हैं, जिससे सामान्य जनता के हितों की उपेक्षा हो रही है।
भारत बंद का प्रभाव
भारत बंद 2025 का कई क्षेत्रों पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है। यूनियनों ने दावा किया है कि बैंकिंग, डाक, कोयला खनन, परिवहन, निर्माण, और बिजली जैसे क्षेत्रों में कामकाज प्रभावित होगा।
1. बैंकिंग और बीमा क्षेत्र
ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉयीज एसोसिएशन (AIBEA) और अन्य बैंक यूनियनों ने हड़ताल में शामिल होने की पुष्टि की है। इससे बैंक शाखाएं और एटीएम सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं। हालांकि, यह औपचारिक बैंक अवकाश नहीं है, लेकिन सेवाओं में व्यवधान की संभावना है।
2. परिवहन सेवाएं
सार्वजनिक और निजी बस सेवाएं, टैक्सी, और ऐप-बेस्ड कैब सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं। हालांकि, रेलवे यूनियनों ने औपचारिक रूप से हड़ताल में शामिल होने से इनकार किया है, लेकिन प्रदर्शनकारियों द्वारा रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों को बाधित करने की आशंका है।
3. डाक और संचार सेवाएं
डाक सेवाएं भी हड़ताल से प्रभावित हो सकती हैं, क्योंकि कई डाक कर्मचारी यूनियनों ने बंद का समर्थन किया है।
4. ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभाव
संयुक्त किसान मोर्चा और ग्रामीण मजदूर संगठनों के समर्थन से ग्रामीण भारत में भी बंद का व्यापक असर पड़ने की संभावना है। खेत मजदूर और किसान सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
5. स्कूल और कॉलेज
अधिकांश स्कूल और कॉलेज सामान्य रूप से खुले रहने की संभावना है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में स्थानीय विरोध के कारण व्यवधान हो सकता है।
6. आपातकालीन सेवाएं
एम्बुलेंस और अन्य आपातकालीन सेवाएं बंद से प्रभावित नहीं होंगी, जैसा कि यूनियनों ने स्पष्ट किया है।
विपक्ष का समर्थन और राजनीतिक आयाम
इस बार भारत बंद को विपक्षी दलों का व्यापक समर्थन प्राप्त है, जो इसे और भी प्रभावी बनाता है। बिहार में, विपक्षी दलों ने मतदाता पुनरीक्षण अभियान को पक्षपातपूर्ण और लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध किया है। इसके अलावा, वामपंथी दल और अन्य गैर-भाजपा शासित राज्यों में बंद का समर्थन देखा जा सकता है।
बिहार में विरोध
बिहार में पटना को विरोध का मुख्य केंद्र बनाया गया है, जहां आयकर गोलंबर से मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय तक पैदल मार्च आयोजित किया गया। यह मार्च विपक्षी दलों और ट्रेड यूनियनों के संयुक्त प्रयासों का हिस्सा है।
संयुक्त किसान मोर्चा का समर्थन
संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) ने इस बंद को पूर्ण समर्थन दिया है और MSP की कानूनी गारंटी और कृषि ऋण माफी की मांग को दोहराया है। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बंद का प्रभाव और बढ़ गया है।
भारत बंद की संवैधानिकता
भारत बंद की संवैधानिकता को लेकर कई बार बहस छिड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई फैसलों में स्पष्ट किया है कि हड़ताल असंवैधानिक नहीं हो सकती, क्योंकि विरोध करने का अधिकार एक मूल्यवान लोकतांत्रिक अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 19(1)(c) के तहत सभी नागरिकों को संघ बनाने और शांतिपूर्ण विरोध करने का अधिकार है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि हड़ताल के दौरान हिंसा या सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना अवैध है। यूनियनों ने स्पष्ट किया है कि 9 जुलाई 2025 का भारत बंद शांतिपूर्ण होगा, और किसी भी हिंसक गतिविधि को समर्थन नहीं दिया जाएगा।
निष्कर्ष
9 जुलाई 2025 का भारत बंद केवल एक हड़ताल नहीं, बल्कि भारत के मजदूरों, किसानों, और कर्मचारियों की एकजुट आवाज है, जो सरकार की नीतियों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज करा रही है। ट्रेड यूनियनों की 17 सूत्री मांगें मजदूरों और किसानों के हितों की रक्षा करने, सामाजिक क्षेत्रों में निवेश बढ़ाने, और कॉरपोरेट समर्थक नीतियों को रोकने पर केंद्रित हैं।
यह बंद न केवल सरकार के लिए एक चेतावनी है, बल्कि यह भारतीय समाज को यह भी याद दिलाता है कि लोकतांत्रिक अधिकारों और सामाजिक न्याय के लिए एकजुटता कितनी महत्वपूर्ण है। भविष्य में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इन मांगों का जवाब कैसे देती है और क्या यह आंदोलन नीतिगत बदलाव लाने में सफल होता है।
डिस्क्लेमर
इस लेख में दी गई जानकारी भारत बंद 2025, ट्रेड यूनियनों की मांगों, और सरकार की नीतियों से संबंधित तथ्यों को विश्वसनीय स्रोतों (जैसे aajtak.in, bbc.com, और अन्य समाचार वेबसाइट्स) से संकलित किया गया है। यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है और इसमें व्यक्त विचार लेखक या स्रोतों के आधार पर हो सकते हैं। हम किसी भी प्रकार की हिंसा, संपत्ति को नुकसान, या गैरकानूनी गतिविधियों का समर्थन नहीं करते। पाठकों से अनुरोध है कि वे इस जानकारी का उपयोग अपनी समझ और विवेक के आधार पर करें। किसी भी निर्णय लेने से पहले संबंधित अधिकारियों या विशेषज्ञों से परामर्श करें। इस लेख के आधार पर कोई भी कार्रवाई करने से पहले स्वतंत्र रूप से तथ्यों की जांच करें।
संदर्भ
www.aajtak.in - भारत बंद: ट्रेड यूनियंस की क्या डिमांड्स हैं
www.mirrormedia.co.in - ट्रेड यूनियनों का भारत बंद को विपक्ष का समर्थन
www.aajtak.in - ट्रेड यूनियनों का ‘भारत बंद’ आज
www.thejbt.com - Bharat Bandh: सरकार की मजदूर नीतियों के खिलाफ भारत बंद
www.bbc.com - श्रमिक संगठन क्यों कर रहे हैं आम हड़ताल
www.prabhatkhabar.com - Bharat Bandh 2025: क्या भारत बंद करना संविधान के खिलाफ है?
@abbas_nighat - भारत बंद | 9 जुलाई 2025
@GaganPratapMath - देशभर में आज 9 जुलाई को भारत बंद
@PDAcomment - भारत बंद 25 करोड़ भारतीयों की एकजुट आवाज़
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