क्या आपको पता है हनुमान जी का जन्म किस स्थान पर हुआ था
DO you know where hanuman ji was born
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हनुमान-जी
महाकाव्य रामायण मैं सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख पात्रों में हनुमान जी का नाम आता है। आज हम बजरंगबली के जीवन की कथाओं पर थोड़ा सा प्रकाश डालेंगे
जय बजरंगबली, जय हनुमान, जय पवन पुत्र, जय अंजनी पुत्र अनेकों नाम है इनके, सबको प्रिय है यह, हमारे देश भारत के अलावा अन्य देशों में भी हनुमान जी को सब जानते हैं। हिंदू धर्म में सबसे लोकप्रिय भक्ति की बात करें तो वह श्रीराम के प्रति हनुमान जी की भक्ति भावना है। महाकाव्य रामायण मैं सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख पात्रों में हनुमान जी का नाम आता है। आज हम बजरंगबली के जीवन की कथाओं पर थोड़ा सा प्रकाश डालेंगे। चलिए शुरू करते हैं। बजरंगबली को संस्कृत भाषा में हनुमान, अंजनेय, और मारुति भी कहते हैं। महाकाव्य रामायण मैं बजरंगबली कि कई लीलाओं का कथन है। बजरंग बली को भगवान शिव के सबसे बुद्धिमान और बलवान अवतारों में से माना जाता है। माता सीता को हनुमान अत्यधिक प्रिय हैं। कथाओं के अनुसार अमरता का वरदान पाने वाले 7 मनीषियों में हनुमान जी भी शामिल है। कहते हैं कि बजरंगबली का अवतार ही भगवान श्री राम की सहायता के लिए हुआ है। अगर इनके पराक्रम की गाथाओं की चर्चा करें तो वह अनगिनत है। बजरंगबली ने जिस कुशलता से सुग्रीव की मैत्री राम के साथ करवाई वह वंदनीय है। युद्ध में सभी वानरों ने श्री राम और हनुमान जी की मदद से असुरों का विनाश कर दिया यह सभी जानते हैं। बजरंगबली का जन्म ज्योतिषी की स्टिक गणना के अनुसार 58112 वर्ष पहले त्रेता युग का जब अंतिम चरण चल रहा था उस समय चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार का दिन था। इस दिन चित्रा नक्षत्र मेष लग्न का योग था, आज के झारखंड राज्य के गुमला जिले में आंजन नाम का एक पहाड़ी गांव था जिसमें एक गुफा थी, इसी गुफा में सुबह 6:03 पर हनुमान जी का जन्म हुआ था। हनुमान जी को बजरंगबली नाम से इसलिए पुकारते हैं क्योंकि इनका शरीर वज्र की तरह मजबूत था। पवन पुत्र इने इसलिए कहा गया क्योंकि इनको पालने में वायु देवता की महत्वपूर्ण भूमिका थी। बजरंगबली को मारुति भी कहा जाता है, मरुत संस्कृत शब्द है जिसका हिंदी शब्द मारुत है और इसका अर्थ होता है हवा और नंदन का अर्थ होता है बेटा इसलिए हिंदुओं की पौराणिक कथाओं में हनुमान जी को मारुति कहते हैं यानी कि मारुति नंदन मतलब हवा का बेटा ।
उनकी नजर उगते हुए सूर्य देव पर पड़ी तो उन्होंने समझा कि यह फल है और उसे पकड़ने के लिए आकाश में उड़ चले।
बचपन में हनुमान जी की कई लीलाएं हैं इनमें से एक लीला है, जब यह छोटे से शिशु थे तो इनकी माता फल लाने के लिए इनको आश्रम में अकेला छोड़ कर चली गई, किंतु नन्हे से हनुमान जी को ज्यादा भूख लगी थी, उनकी नजर उगते हुए सूर्य देव पर पड़ी तो उन्होंने समझा कि यह फल है और उसे पकड़ने के लिए आकाश में उड़ चले। पवन देवता उनकी सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते थे तो वह भी इनके साथ साथ बहुत तेजी से चलने लगे। सूर्य देव की नजर जब शिशु हनुमान पर पड़ी तो वह समझ गए कि यह अबोधबालक है और उन्होंने अपने प्रचंड तेज से हनुमान जी को कोई हानि नहीं पहुंचने दी। किंतु बालक हनुमान तो सूर्य देव को पकड़ने ही वाले थे कि अचानक उसी समय राहु भी सूर्यदेव पर ग्रहण लगाने के लिए आ गया। बालक हनुमान ने सूर्यदेव की जगह राहु को स्पर्श कर दिया तो राहु डर गया और वहां से भाग कर सीधे इंद्रदेव के पास पहुंच गया। राहु ने इंद्रदेव से कहा कि देवराज आपने चंद्र और सूर्य मुझे अपनी क्षुधा शांत करने के लिए दिए थे। आज अमावस्या है इसलिए मैं अपनी क्षुधा शांत करने के लिए सूर्य देव को पकड़ने जा रहा था किंतु वहां कोई और ही उनको पकड़ने वाला है। राहु की बात सुनकर इंद्रदेव आश्चर्यचकित हुए और उन्होंने कहा चलो मैं देखता हूं कौन है वह, जैसे ही इंद्रदेव और राहु वहां पहुंचे तो बालक हनुमान राहु को पकड़ने के लिए उन पर झपटे, और राहु ने अपनी रक्षा के लिए इंद्रदेव को पुकारा। इंद्रदेव क्रोधित हो गए और उन्होंने नन्हे बालक हनुमान जी पर वज्र से प्रहार कर दिया। इसी प्रहार से वह एक पर्वत पर गिरे और उनकी बाय ठुडी पर गहरा निशान पड़ गया। नन्हे बालक की इस अवस्था को देखकर वायु देव क्रोधित हो गए और उन्होंने उसी क्षण संसार में वायु गति को रोक दिया। वायु गति रुकने से संसार में सारे प्राणी पीड़ा से तड़पने लगे। पूरे संसार में त्राहि-त्राहि मच उठी। तब सारे यक्ष, सुर, असुर, किन्नर सब इकट्ठे होकर ब्रह्मा जी के शरण में चले आए। ब्रह्मा जी सबको साथ लेकर वायु देवता के पास आए, ब्रह्मा जी ने देखा वायु देव मूर्छित हुए नन्हे बालक हनुमान को गोद में लिए उदास होकर बैठे थे। तब ब्रह्मा जी ने नन्हे बालक हनुमान को स्पर्श किया तो वह है उठ कर बैठ गए। ब्रह्मा जी ने कहा कि संसार का कोई भी शस्त्र इनको नुकसान नहीं पहुंचा सकता। इंद्रदेव ने भी कहा कि इनका शरीर वज्र से भी ज्यादा कठोर होगा। सूर्य देव कहां पीछे रहने वाले थे, उन्होंने भी कहा कि मैं अपने तेज इनको प्रदान करूंगा और सारे शास्त्र की शिक्षा और आशीर्वाद दूंगा। वरुण देव से भी नहीं रहा गया और उन्होंने भी कहा यह नन्ना बालक मेरे जल से और मेरे पाश से हमेशा सुरक्षित रहेगा। फिर तो वरदानों की और आशीर्वाद की लाइन सी लग गई, यमराज ने कहा कि मैं इन्हें हमेशा निरोग और अवधय रहने का आशीर्वाद देता हूं। आशीर्वाद देने वालों की कतार में फिर यक्षराज कुबेर, विश्वकर्मा इत्यादि देवताओं ने भी अमोघ वरदान प्रदान किए। हनुमान जी की ठुडी पर निशान बन गया था इसलिए इन्हें हनुमान नाम दिया गया। हनुमान जी के अनेकों नाम प्रसिद्ध है जैसे कोई उन्हें बजरंगबली कहता है कोई मारुति कहता है कोई अंजनी पुत्र जाता है कोई इन्हें संकटमोचन कहता है कोई केसरी नंदन, महावीर, कपिश, शंकर सुवन इत्यादि नामों से पुकारते हैं।
सुंदरकांड रामायण की पांचवी पुस्तक है जो पूरी की पूरी हनुमान जी पर केंद्रित है
हिंदू धर्म के महाकाव्य रामायण में हनुमान जी को वानर वाले रूप में दिखाया गया जिसके बल की कोई सीमा नहीं है। हनुमान जी हमेशा जनेऊ अपने कंधे पर लटका कर रहते हैं और मात्र एक लंगोट लपेट कर रखते हैं। उनके सिर पर हमेशा एक स्वर्ण मुकुट रहता है और विभिन्न स्वर्ण आभूषण उनके शरीर पर नजर आते हैं। हनुमान जी की पूंछ काफी लंबी है और गदा उनके मुख्य अस्त्रों में शामिल है। सुंदरकांड रामायण की पांचवी पुस्तक है जो पूरी की पूरी हनुमान जी पर केंद्रित है। इस पुस्तक में हनुमान जी के द्वारा किस तरह श्रीराम की सहायता कि इसका संपूर्ण वर्णन है। लंका के राजा रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया और 14 साल के आखरी साल में राम और हनुमान जी की मुलाकात होती है। संपूर्ण कथा में वर्णन है कि श्री राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ अपनी पत्नी सीता को खोज रहे हैं और किस तरह उनकी मुलाकात हनुमानजी से होती है सबसे प्रचलित कथाओं में से हैं। भारत में रामायण के ऊपर लिखी काफी पुस्तकें और रूपांतरण मौजूद है। सारी की सारी पुस्तकों में श्री राम लक्ष्मण माता सीता और हनुमान जी का वर्णन लगभग एक जैसा ही है।
भारत का एक महान महाकाव्य है महाभारत इसमें भी हनुमान जी का संक्षिप्त उल्लेख है
भारत का एक महान महाकाव्य है महाभारत इसमें भी हनुमान जी का संक्षिप्त उल्लेख है। इस महाकाव्य में वर्णन है कि जब पांडव कैलाश पर्वत पर पर जा रहे थे तो उन्हें रास्ते में एक वानर लेटा हुआ मिला। क्योंकि पांडवों में सबसे असाधारण ताकत का स्वामी पांडु पुत्र भीम थे, इसलिए उन्होंने उस वानर को रास्ते में से हट जाने को कहा। वानर ने कहा मैं रास्ते में नहीं हूं मेरी पूंछ ही तो रास्ते में है, थोड़ा सा कष्ट करके आप ही उसको थोड़ा साइड में रख दो। भीम ने गुस्से में हनुमान जी की पूंछ को साइड में करने के लिए हिलाने की कोशिश की किंतु वह पूंछ को हिलाने में असमर्थ रहे। भीमसेन समझ गए कि उनका सामना हनुमान जी से हुआ है तब उन्होंने उनसे आशीर्वाद लिया। इससे पता चलता है कि बजरंगबली महाबली है। विजयनगर के खंडहर में इनकी कलाकृति का हिस्सा आज भी मौजूद है।
स्कंद पुराण और रामेश्वर में हनुमान जी की कहानियों का उल्लेख है
महाभारत, रामायण के अलावा कई ग्रंथों में हनुमान जी की कथाओं का वर्णन है। जैसे स्कंद पुराण और रामेश्वर में हनुमान जी की कहानियों का उल्लेख है। शिव पुराण का एक दक्षिण भारतीय संस्करण है जिसमें हनुमान जी को शिव और मोहिनी के पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। जो आप इस तरह समझ सकते हैं कि स्वामी अय्यप्पा की मूल कथा के साथ हनुमान जी की कथा को जोड़ा गया या विलय कर दिया गया, यह कथा दक्षिण भारत के कई हिस्सों में लोकप्रिय है। भारत के महान कवि तुलसीदास जी ने 16वीं शताब्दी में हनुमान जी को समर्पित एक भक्ति गीत लिखा था जो हनुमान चालीसा के नाम से प्रख्यात है। कवि तुलसीदास जी ने रामचरित्र मानस और रामायण का एक अवधी भाषा में भी संस्करण लिखा।
हनुमान ने अपने शरीर को मधुमक्खी के आकार का बना लिया और महाकाली की विशाल मूर्ति की ओर चले आए
देवी काली और हनुमान जी की यह कथा काफी मशहूर है। इससे कथा का उल्लेख कृतिवसी रामायण में भी मिलता है। कथा के अनुसार माही रावण और लंकापति रावण विश्वसनीय मित्र थे। युद्ध में जब मेघनाथ का वध कर दिया गया तब राम और लक्ष्मण को मारने के लिए रावण ने पाताल लोक के राजा महिरावण से मदद मांगी। महिरावण ने अपनी माया का उपयोग करके एक रात को विभीषण का रूप धरकर श्री राम के शिविर में प्रवेश कर लिया। उसने निंद्रा मंत्र से सभी वानर सेना को सुला दिया। निंद्रा अवस्था में उन्होंने राम और लक्ष्मण का अपहरण किया और उन्हें पाताल लोक लेकर आ गया। महिरावण देवी काली का भक्त था और रावण ने अपरहण किए गए राम लक्ष्मण को देवी को बलिदान करने के लिए मना लिया। महिरावण रावण की बात से सहमत हो गया। इधर हनुमान जी ने देखा कि शिविर में राम और लक्ष्मण नहीं है तो उन्होंने विभीषण से इस बारे में चर्चा की। विभीषण ने बताया कि हो सकता माहिरावण ही राम और लक्ष्मण को अपनी माया से अपहरण करके पाताल लोक में ले गया हो। विभीषण ने पाताल लोक का रास्ता हनुमान को बता दिया और हनुमान श्री राम और लक्ष्मण को बचाने के लिए पाताल लोक की ओर चल दिए। रास्ते में उनकी मुलाकात मकरध्वज से हुई, मकरध्वज ने कहा कि वह उनका पुत्र है और उनका पसीना मगरमच्छ के मुंह में चला गया था, उसी से मैं पैदा हुआ हूं। हनुमान ने मकरध्वज को हराकर अपनी पूंछ में बांध लिया और महल के अंदर प्रवेश कर गए। महल के अंदर हनुमान की मुलाकात चंद्रसेन से हुई, चंद्रसेन ने बताया कि महीरावण दोनों भाइयों की बलि देने की तैयारी कर रहा है। चंद्रसेन ने महिरावण को मारने का तरीका भी बता दिया। हनुमान ने अपने शरीर को मधुमक्खी के आकार का बना लिया और महाकाली की विशाल मूर्ति की ओर चले आए। उन्होंने माता को राम और लक्ष्मण के बारे में बताया, माता ने मधुमक्खी बने हनुमान जी की बात सुनी। तब माता ने हनुमान की जगह ले ली। अब माता की जगह हनुमान जी विराजमान थे और उन्होंने राम और लक्ष्मण को झुकने के लिए कहा। राम और लक्ष्मण ने झुकने से इनकार कर दिया क्योंकि वह सूर्यवंशी थे। यह देखकर महीरावण उन्हें झुकाने के लिए तरीका बताने लगा। इसी समय हनुमान जी ने अपना पंचमुखी रूप प्रकट कर दिया। इस पंचमुखी रूप में गरुड़, नरसिंह, वराह, हयगीव, और अपने स्वयं के शीश के साथ प्रकट हो गए। हनुमान जी के यह पंछ मुख एक विशेष प्रतीक को दर्शाता है, जैसे साहस और शक्ति निडरता, गरुड़, नाग के काटने, वराह स्वास्थ्य और शत्रु पर विजय प्राप्त करने के साथ-साथ भूत भगाने का प्रतीक है। उन्होंने पांचों दिशाओं में पांच तेल के दीपक जलाकर महीरावण का सिर काट दिया जिसके कारण वह मृत्यु को प्राप्त हो गया। इसके बाद हनुमान जी राम और लक्ष्मण को अपने कंधों पर बिठाकर बाहर की ओर उड़ान भरी तो राम और लक्ष्मण की नजर उन की पूंछ पर पड़ी उन्होंने मकरध्वज को हनुमान की पूंछ से बंधा देखा। राम ने कहा की मकरध्वज को पाताल का राजा बना देते हैं। महिरावण की कहानियां पूरब की रामायण में अपना विशेष स्थान रखती है। रामायण के बंगाली संस्करण मैं आप इस कहानी को पढ़ सकते हैं। सारे घटना कर्म वाले मार्ग को महिराबोनरपाला के नाम से भी जाना जाता है। देवी काली हनुमान जी पर प्रसन्न हो गई और उन्होंने उन्हें अपने द्वारपाल होने का आशीर्वाद दिया। आपने देखा होगा की देवी काली के मंदिरों में प्रवेश द्वार के दोनों ओर भैरव और हनुमान पाए जाते हैं।
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