Hindu dharm mein Kartik Purnima ko tripuri Purnima yah Ganga snan be kahate Hain
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Kartik-Purnima |
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) कार्तिक पूर्णिमा का हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। हिंदुओं के कैलेंडर के अनुसार पूरे वर्ष में 12 पूर्णिमा होती है। किंतु जब अधिकमास या मलमास आता है तो पूर्णिमा की संख्या बढ़कर 13 हो जाती है।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) को त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान भी कहा जाता है। त्रिपुरी पूर्णिमा नाम के पीछे लोककथा है कि इस दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक असुर का नाश किया था, इसलिए वे त्रिपुरारी के रूप में पूजनीय हुए थे।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) को मान्यता है कि इस दिन कृतिका में भगवान भोलेनाथ के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। मान्यता है कि इस दिन जब चंद्रमा आकाश में उदय हो रहा हो उस समय छह कृतिकाओं शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया, और क्षमा की पूजा करने से भोलेनाथ जी प्रसन्न होते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) को गंगा नदी में स्नान करने से भी पूरे साल भर का पुण्य प्राप्त हो जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन तमिलनाडु के अरुणाचल पर्वत की 13 किलोमीटर लंबी परिक्रमा भी की जाती है। यह परिक्रमा इस दिन लगाने से सबसे बड़ी परिक्रमा कहलाती है। इस दिन लाखों की संख्या में लोग परिक्रमा करके पुण्य लाभ कमाते हैं। इस दिन अवंतिकापुरी आजमगढ़ में मेला भी लगता है जो बहुत ही शुद्ध भाव से मनाया जाता है। अरुणाचल पर्वत श्रंखला पर कार्तिक स्वामी जी का आश्रम है वहां उन्होंने सकंदपुराण की रचना की थी।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन ही श्री हरि भगवान विष्णु ने वेदों की रक्षा एवं सृष्टि को बचाने के लिए प्रलय काल में मत्स्य अवतार धारण किया था।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) का वर्णन महाभारत काल में युद्ध की समाप्ति के पश्चात भी मिलता है। महाभारत के भीषण संग्राम के 18 दिनों के बाद जब युधिष्ठिर ने रणभूमि में योद्धाओं और अपने सगे संबंधियों को देखा तो उनका मन विचलित हो गया। तब श्रीकृष्ण युधिष्ठिर को पांडवों के साथ गढ़ खादर के विशाल रेतीले मैदान पर लेकर आए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को पांडवों ने स्नान किया और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तक गंगा किनारे यज्ञ किया। इसके उपरांत उन्होंने दिवंगत आत्माओं की शांति के लिए हैं दीपदान करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। इसीलिए मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान का और विशेष रुप से गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ नगरी में आकर स्नान करने से बहुत विशेष पुण्य मिलता है।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) की मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि में बछड़ा दान करता है तो उन्हें शिव पद की प्राप्ति हो जाती है। और जो मनुष्य इस दिन भगवान भोलेनाथ का उपवास करके उनका गुणगान और भजन करता है तो उन्हें अग्निष्टोम नामक यज्ञ का पुण्य फल प्राप्त होता है।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) का वैष्णव मत के अनुसार मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा को रासमंडल में श्री कृष्ण भगवान ने राधा जी का पूजन किया था। मान्यताओं के अनुसार ज्ञात सभी ब्रह्मांडों से हटकर जो सर्वोच्च गोलोक है वहां रासमंडल का आयोजन होता है और राधा उत्सव भी मनाया जाता है।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन वैष्णव मत के अनुसार देवी तुलसी का मंगलमय प्राकट्य बैकुंठ धाम में हुआ था। देवी तुलसी ने पृथ्वी पर कार्तिक पूर्णिमा को ही जन्म ग्रहण किया था।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के दिन वैष्णव मत के अनुसार देवी राधा जी की शुभ प्रतिमा के दर्शन और उनका वंदन करके मनुष्य जन्म के बंधनों से मुक्त हो जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन श्री हरि भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करते हैं। कार्तिक मास में राधा और कृष्ण का पूजन जरूर करना चाहिए। राधा कृष्ण का तुलसी वृक्ष के नीचे निष्काम भाव से मूर्ति का पूजन करने पर जीवन चक्र के प्रभाव से मुक्त समझना चाहिए। जहां तुलसी का अभाव हो वह आंवले के वृक्ष के नीचे बैठ कर पूजा अर्चना कर सकते हैं।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) के अनुसार पराऐ अन्न, दाल, गाजर, चावल, मूली, बैंगन, घीया, तेल खाना, मदिरा, कांजी का त्याग कर देना चाहिए। अन्न का दान कार्तिक मास में अवश्य करें इस दान का कार्तिक मास में बहुत अधिक मान्यता है।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) को महा कार्तिकी भी कहा गया है। मान्यता है कि भरणी नक्षत्र हो तो कार्तिक पूर्णिमा का महत्व और अधिक हो जाता है। इस पूर्णिमा के दिन रोहिणी नक्षत्र हो तो बहुत अधिक महत्व बढ़ जाता है।ओर यदि इस दिन कृतिका नक्षत्र पर चंद्रमा और बृहस्पति हो तो यह महापूर्णिमा कहलाती है। यदि कृतिका नक्षत्र पर चंद्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो पद्मक योग बनता है इस योग में गंगा स्नान करने से पुष्कर से भी अधिक उत्तम फल की प्राप्ति होती है।
कार्तिक पूर्णिमा (Kartik Purnima) मैं स्नान के प्रसंग में महर्षि अंगिरा ने लिखा है कि यदि स्नान में कुशा और दान करते समय हाथ में जल जप करते समय संख्या का संकल्प नहीं किया जाए तो कर्म फल की प्राप्ति नहीं होती है। शास्त्रों के नियमों के अनुसार स्नान करने से पहले हाथ पैर धो लें फिर आचमन करके हाथ में कुशा लेकर स्नान करें, दान देते समय भी इसी प्रकार हाथ में जल लेकर दान करें। यज्ञ करने वालों के लिए पहले संख्याओं का संकल्प कर लें उसके पश्चात जप और यज्ञ आदि कर्म करें।
कार्तिक स्नान (Kartik Purnima) को सिख संप्रदाय में प्रकशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। सिख मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक देव जी महाराज का जन्म हुआ था। इस दिन पूरी दुनिया के गुरुद्वारों में लोग बाग सुबह-सुबह नहा धो कर गुरु वाणी सुनते हैं और नानक देव जी महाराज के बताए रास्तों पर चलने का संकल्प लेते हैं। पूरे दिन गुरुद्वारों में लंगर चलता है। इस फेस्टिवल को गुरु पर्व भी कहा जाता है।
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