Govardhan ko annakut ke naam se bhi Jana jata hai

Govardhan
-pujan

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Govardhan pujan : भारत में दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन (Govardhan) पूजा की जाती है। गोवर्धन को अन्नकूट के नाम से भी कहा जाता है। इस त्यौहार का भारत में बहुत ही महत्व है। इस त्यौहार से प्रकृति और मानव के संबंध का पता चलता है। इस पर्व की मान्यता और लोक कथा के अनुसार गोधन यानी कि गाय की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार गाय गंगा की तरह ही पवित्र है। देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी गाय में ही वास करता है। जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सुख और समृद्धि प्रदान करती है उसी प्रकार गौ माता का दूध स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति कराता है। इस प्रकार गौ माता संपूर्ण इंसानी सभ्यता के लिए आदरणीय और पूज्यनीय है। गोवर्धन की पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन की जाती है, इस पूजा में गाय के प्रति श्रद्धा प्रकट की जाती है। और गोवर्धन मैं गाय को प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
Govardhan Katha : गोवर्धन कथा के अनुसार, देवराज इंद्र के अभिमान को चकनाचूर करने के लिए श्री कृष्णा ने जो स्वयं विष्णु भगवान के अवतार हैं, उन्होंने एक लीला रची। अभिप्राय यह है की एक दिन कृष्णा ने देखा किस समय बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और पूजा की तैयारी कर रहे हैं।
Pujan : कृष्णा ने भोलेपन से माता यशोदा से पूछा, मैया मोरी आप लोग किसकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं जो इतने उत्तम पकवान बना रहे हैं। मैया बोली लल्ला हम देवताओं के राजा इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रहे हैं और इसीलिए अन्नकूट बना रहे हैं। कृष्णा ने मैया से फिर पूछा हमें इंद्र की पूजा क्यों करनी चाहिए। मैया ने कहा लल्ला इंद्रदेव वर्षा करते हैं और उस जल से खेतों में अन्न पैदा होता है। और गायों को चारा भी मिलता है। यह सुनकर कृष्ण बोले मैया हमें तो गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाय तो वही चारा चरने जाती है। इंद्र ने कभी किसी को दर्शन भी नहीं दिए और अगर कोई पूजा नहीं करें तो क्रोधित हो जाते हैं और वह बहुत ही अहंकारी है इसलिए उनकी पूजा नहीं करनी चाहिए।
कृष्णा की बातों से प्रभावित होकर सबने इंद्र के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरु कर दी। देवराज इंद्र ने इसे अपना अपमान समझकर मूसलाधार वर्षा करनी प्रारंभ कर दी। प्रलयंकारी वर्षा के कारण सभी बृजवासी कृष्णा को कोसने लगे। वे आपस में बतियाने लगे यह सब कृष्णा के कारण हुआ है हमने उसकी बात मान कर इंद्र को नाराज कर दिया।
कृष्णा को सब कुछ पता था उन्होंने अपनी मुरली कमर में डाली और सबसे छोटी उंगली कनिष्ठा से गोवर्धन पर्वत को उठा लिया। और सारे ब्रजवासियों को अपने गाय बछड़ों समेत गोवर्धन पर्वत के नीचे आने के लिए कहा। इंद्र ने जब यह देखा तो उन्होंने क्रोधित होते हुए और तेज वर्षा शुरू कर दी। यह सब देखकर कृष्णा ने अपने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप गोवर्धन पर्वत के ऊपर वर्षा की गति को नियंत्रित कीजिए, और शेषनाग से कहा कि आप पर्वत के चारों ओर मेड़ बनकर पानी को अंदर आने से रोक दीजिए।
देवराज इंद्र ने क्रोधित होते हुए लगातार 7 दिनों तक मूसलाधार बरसात करी। उन्हें लगा था कि पृथ्वी पर कोई भी मनुष्य उनका मुकाबला नहीं कर सकता। किंतु असफल रहने पर वह ब्रह्मा जी के पास गए और सारा वृत्तांत सुनाया। ब्रह्मा जी ने इंद्र से कहा जिन्हें आप सामान्य मनुष्य समझ रहे हैं वह साक्षात भगवान विष्णु के अंश है। और पूर्ण पुरुषोत्तम नारायण है।
इंद्र इतना सुनकर बहुत लज्जित हुए और उन्होंने कहां, हे प्रभु मैं आपको पहचान नहीं सका और अपने अहंकारवश यह अपराध कर बैठा। प्रभु आप कृपालु हैं और दयालु है इसलिए मेरी इस भूल को क्षमा कर दीजिए। तत्पश्चात देवराज इंद्र ने मुरलीधर कृष्णा की आराधना करके उन्हें भोग लगाया।
बृजवासी इसी दिन से गोवर्धन पर्वत की पूजा करते आए हैं। इस दिन अपने गाय बैलों को स्नान कराकर उन्हें रंग रोगन से सजाया जाता है। और उनके गले में नहीं रस्सी डाली जाती है उसके पश्चात गाय और बैलों को चावल और गुड़ खिलाते हैं।
Govardhan puja ka vidhi Vidhan : इस दिन परंपरा है कि प्रात काल जल्दी उठकर शरीर पर तेल की मालिश करने के बाद स्नान करना चाहिए। तत्पश्चात पूजन सामग्री के साथ पूजा के स्थान पर बैठ कर अपने कुलदेवता और कुलदेवी का ध्यान करना चाहिए।
गोवर्धन पूजा करने के लिए पूरे श्रद्धा भाव से गोबर से गोवर्धन पर्वत का निर्माण करना चाहिए। गोवर्धन को लेटे हुए पुरुष की आकृति में बनाना चाहिए। अगर आप इसे ठीक तरीके से नहीं बना पाते हैं तो जैसा आप से बने वैसा बना लीजिए परंतु प्रतीक रूप में गोवर्धन पर्वत का रूप देकर फूल पत्तियों टहनियों और गाय की आकृति बना लीजिए, जो जैसा आप से बने वैसी आकृति बना लीजिए परंतु भाव गोवर्धन पर्वत का ही होना चाहिए और इससे सुंदर तरीके से सजा लीजिए।
गोवर्धन पूजा में कुछ स्थानों पर गायों को स्नान करा कर और उन्हें सिंदूर और पुष्प मालाओं से सजाकर पूजा करने की भी परंपरा है। गाय की पूजा करनी हो तो पहले उसे स्नान कराकर श्रृंगार कर सकते हैं और उसके सिंह पर घी लगाए और गुड़ खिलाएं। पूजा करने के बाद एक मंत्र का उच्चारण भी करते हैं जिससे लक्ष्मी माता प्रसन्न होती है और जिसके कारण घर में कभी भी धन का अभाव नहीं होता।
गोवर्धन की पूजा में फल फूल मिठाई और गन्ना भी अर्पित करते हैं, एक कटोरी में दही लेकर नाभि के स्थान पर डालते हैं फिर एक झरनी से गोबर में दही डालकर जानते हैं और पूजा के साथ गीत गाते हुए 7 बार परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा करते हुए एक व्यक्ति एक हाथ में जल का लोटा और दूसरा व्यक्ति जौं यानी कि अन्न लेकर चलता है। जल वाला व्यक्ति जल की धारा को धरती पर गिराते हुए चलता रहता है और जौं वाला व्यक्ति जौं को धरती में बोते हुए परिक्रमा करता चलता है।
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