Chhath puja

Chhath parv, chhath Puja Kartik Shukla mein manaya jane wala hinduon ka tyohar hai


Chhath Pujan Vrati in water
Chhath-Pujan

छठ पूजा (chhath puja) दीपावली के बाद छठे दिन से छठ पूजा का पर्व 4 दिनों तक चलता है इन 4 दिनों में श्रद्धालु या व्रती भगवान सूर्य की पूजा और आराधना करके पूरे साल भर सुखी, स्वस्थ और निरोगी होने की मंगल कामना करते हैं। इस पर्व के 4 दिनों में पूरे घर की साफ सफाई की जाती है।यह परंपरा पूर्णतया ग्रामीण किसानों के जनजीवन पर आधारित हैं जोकि प्राकृतिक रूप से प्रकृति के नजदीक रहते हैं। इसमें किसी भी प्रकार से गुरु या ब्राह्मण या पुरोहित की जरूरत नहीं पड़ती। पूरी तरह से पारिवारिक रूप से और सार्वजनिक रूप से प्रकृति से उत्पन्न खाद्य पदार्थों से और सूर्य की प्राकृतिक ऊर्जा को नमन करने का पर्व है।


छठ पूजा (Chhath Pooja) छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष में सूर्य उपासना का त्यौहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश के अलावा नेपाल के तराई वाले क्षेत्रों में भी मनाया जाने लगा है। बिहार में यह पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है मान्यता है कि बिहार में इसे सबसे बड़े त्यौहार के रूप में देखा जाता है।


छठ पूजा ( chhath puja) वैदिक काल से चला आ रहा छठ पर्व या सूर्य उपासना बिहार की संस्कृति का हिस्सा है। अब यह पर्व पूरे भारत के अलावा विदेशों में मैं भी प्रचलित हो गया है। यह ऋग्वेद में सूर्य पूजन या उषा पूजन आर्य परंपराओं के अनुसार बिहार में मनाया जाता है।


छठ पूजा (chhath puja) मैं सूर्य पूजा, उषा पूजा, प्रकृति पूजा, जल पूजा, वायु और उनकी बहन छठ मैया को समर्पित है। अभिप्राय है कि पृथ्वी पर जीवन के लिए प्रकृति द्वारा दी गई चीजों के लिए धन्यवाद। छठ पूजा में कोई मूर्ति पूजा नहीं होती है।


छठ पूजा (chhath puja) त्योहार के अनुष्ठान और नियम कठिन है। 4 दिन तक मनाया जाने वाले इस व्रत में पवित्र स्नान, और उपासना के अलावा निर्जला व्रत भी करना पड़ता है। पानी के अंदर लंबे समय तक खड़े होकर प्रार्थना प्रसाद और सूर्य को जल चढ़ाते हैं। आमतौर पर महिलाएं ही इस पर्व में बड़ी संख्या में होती है किंतु अब पुरुष भी इस पर्व में शामिल होने लगे हैं। इस त्यौहार में सभी उम्र के पुरुष स्त्री, बच्चे और बूढ़े सब शामिल होते हैं।


छठ पूजा(chhath puja) की कथा इस प्रकार है। जब असुरों में और देवताओं में पहली बार युद्ध हुआ तब देवता असुरो से हार गए। कब देवताओं की माता आदिति ने देवारण्य के देव सूर्य मंदिर में छठ मैया की आराधना करी। छठ मैया ने प्रसन्न होकर उन्हें सर्वगुणों से संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दे दिया था। तत्पश्चात अदिति के पुत्र त्रिदेव रूप आदित्य भगवान ने असुरों पर देवताओं को विजय दिलवाई। कहावत है कि उसी काल से षष्ठी देवी की पूजा होने लगी। हालांकि छठ पूजा काहिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में कहीं भी उल्लेख नहीं है। लेकिन प्राकृतिक पूजा होने के कारण सबको यही संदेश जाता है कि हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि प्रकृति से ही जीवन है।


छठ पूजा (chhath puja) साल में दो बार आती है। एक पूजा चैत्र मास में एवं दूसरी कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि, पंचमी तिथि, षष्ठी तिथि और सप्तमी तिथि तक मनाई जाती है। षष्ठी देवी माता को कात्यायनी माता के नाम से भी पुकारते हैं। नवरात्रों में षष्ठी माता की पूजा की जाती है, एवं छठ पूजा में षष्ठी माता की पूजा परिवार के सभी सदस्यों की सुरक्षा एवं उनकी स्वास्थ्य लाभ की कामना करके सूर्य भगवान एवं गंगा माता की पूजा की जाती है। छठ पूजा नदी, तालाब और गंगा मैया में की जाती है। छठ पूजा से पहले सारे नदी तालाबों की साफ-सफाई की जाती है। नदियों और तालाबों को प्राकृतिक रूप देते हुए सजाया जाता है।


छठ पूजा (chhath puja) की अनेक कथाएं प्रचलित हैं। कथा के अनुसार जब पांडव जुए में अपना सारा राजपाट हार गए, तब श्री कृष्णा ने द्रोपती से छठ व्रत रखने के लिए कहा। द्रोपदी ने जब छठ व्रत रखा तो उनको सारा राजपाट वापस मिल गया। लोक मान्यताओं के अनुसार छठी मैया और सूर्यदेव का संबंध बहन-भाई का है। लोकमाता षष्ठी की पहली पूजा सूर्य द्वारा की गई थी।


छठ पूजा (chhath puja) की एक पौराणिक कथा के अनुसार लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम ने और माता सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास किया था। उन्होंने सूर्य देव की आराधना की थी। कार्तिक शुक्ल सप्तमी को उन्होंने सूर्योदय के समय अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद लिया था।


छठ पूजा (chhath puja) की एक लोक कथा के अनुसार महाभारत काल में छठ पर्व की शुरुआत हुई। सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा अर्चना की, वह सूर्य देव के परम भक्त थे। सूर्यपुत्र कर्ण पानी में प्रतिदिन खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते थे। सूर्यपुत्र कर्ण की यही पद्धति छठ में अपनाई जाती है।


छठ पूजा (chhath puja) पुराणों में एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद के कोई संतान उत्पन्न नहीं हुई थी। महर्षि कश्यप ने राजा प्रियवद को पुत्रेष्टि यज्ञ करवा कर उनकी पत्नी मालिनी को यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर खिलाने को दी। इस खीर के प्रभाव से उन्हें पुत्र हुआ, किंतु वह मृत पैदा हुआ था। राजा प्रियवद पुत्र को श्मशान में ले जाकर पुत्र वियोग में अपने प्राण त्यागने लगे। उसी समय ब्रह्माजी की मानस कन्या देव सेना ने प्रकट होकर प्रियवद से कहा, की सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं, राजा प्रियवद आप मेरी पूजा करें तथा लोगों को भी मेरी पूजा करने के लिए प्रोत्साहित करें। प्रियवद ने पुत्र की इच्छा करके कार्तिक शुक्ल षष्ठी को देवी षष्ठी का व्रत किया, तत्पश्चात उन्हें पुत्र प्राप्त हुआ।


छठ पूजा (chhath puja) का वैज्ञानिक की दृष्टि में बड़ा महत्व है। षष्ठी तिथि या छठ पूजा के दिन एक विशेष खगोलीय परिवर्तन देखा गया है। सूर्य की पराबैंगनी किरणें इस दिन पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में इकट्ठी हो जाती है। इस कारण मनुष्य को कुप्रभावों से बचाने मैं छठ पर्व का बड़ा महत्व है। सूर्य की पराबैंगनी किरणों का असर इस छठ पूजा में प्राकृतिक पूजा के कारण कम हो जाता है। सूर्य की सामान्य से अधिक पराबैंगनी किरणें ज्योतिष गणना के अनुसार कार्तिक तथा चैत्र मास की अमावस्या के 6 दिन बाद आती है। इसी समय छठ पर्व का भी आयोजन होता है शायद इसीलिए इस पर्व का नाम छठ पूजा रखा गया हो।


छठ पूजा (chhath puja) का यह पर्व 4 दिनों तक मनाते हैं। जो कि निम्न प्रकार से हैं।


छठ पूजा (chhath puja) का पहला दिन नहाए खाए : पहले दिन (चैत्र या कार्तिक शुक्ल चतुर्थी) को नहाए खाए कहा जाता है, इसमें सबसे पहले घर आंगन की साफ सफाई एवं पुताई करके गंगाजल या नदी में स्नान करते हैं। पूरे शरीर को जल से शुद्धिकरण करते हुए साफ करते हैं और अपने नाखूनों को काटकर कर छोटा कर देते है। स्नान करने के पश्चात अपने साथ गंगाजल लेकर चलते हैं, इसी गंगाजल से खाना पकाया जाता है। व्रत करने वाला पूरे दिन में सिर्फ एक ही बार खाना खाते हैं। खाने में मूंग चना की दाल, चावल और कद्दू की सब्जी का उपयोग करते हैं। तली हुई पूरिया और पराठे एवं सब्जियां वर्जित है। यह भोजन मिट्टी के बर्तनों के अलावा कांसे के बर्तनों में भी पकाया जा सकता है। मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी में ही अधिकतर यह खाना बनाया जाता है। खाना बनने के बाद सबसे पहले व्रत रखने वाला खाना खाता है, तत्पश्चात परिवार के अन्य सदस्य खाना खा सकते हैं।


छठ पूजा (chhath puja) के दूसरा दिन खरना और लौहंडा :  दूसरे दिन को (चैत्र या कार्तिक शुक्ल पंचमी) खरना और लोहंडा के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत करने वाला पूरे दिन उपवास रखता है और अन्न और जल सूर्यास्त तक ग्रहण नहीं कर सकता। शाम को गन्ने के रस और गुड़ से खीर पकाई जाती है। ध्यान रहे खाने में नमक और चीनी का इस्तेमाल नहीं करना है। उसके पश्चात एकांत में रहकर व्रत करने वाला भोजन ग्रहण करता है उस वक्त जिन्होंने व्रत नहीं रखा वह घर से बाहर चले जाते हैं और आसपास कोई शोर शराबा नहीं करते। इस व्रत में आवाज सुनना व्रत पर्व के नियम के विरुद्ध है।


छठ पूजा (chhath puja) का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य है : छठ पूजा के तीसरे दिन को (चैत्र या कार्तिक शुक्ल षष्ठी) संध्या अर्घ्य कहते हैं। सब लोग मिलकर पूरे दिन पूजा की तैयारियां करते हैं। पूजा के लिए चावल के लड्डू जिसे ठेकुआ या कच्चवनिया भी कहते हैं, बना लिया जाता है। छठ पूजा के लिए एक टोकरी जिसे दउरा कहते हैं जो बांस से बनी हुई होती है, मैं फल और पूजा का प्रसाद रखकर देवकारी में रख देते हैं। पूजा अर्चना करने के शाम को सूप में पांच प्रकार के फल, नारियल, और पूजा का सामान लेकर दउरा रख दिया जाता है। घर का पुरूष सदस्य अपने हाथों से दउरा को अपने सर पर रख कर छठ के घाट तक लेकर आता है। यह पवित्र सामग्री है इसलिए इसे सिर के ऊपर रखकर ही चलते हैं ताकी कोई अशुद्धि इसको छू ना पाए। परिवार की महिलाएं रास्ते में छठ मैया के गीत गाते हुए चलती है।


तालाब या नदी के किनारे पर जाकर महिलाएं उस चबूतरे पर बैठती है जो परिवार के किसी सदस्य द्वारा ही बनाया जाता है। पानी में से मिट्टी निकाल कर छठ पूजा के सामान को छठ माता के लिए बनाए गए चोरा पर पूजा का सामान रखते हैं। फिर नारियल चढ़ाकर दीप जला देते हैं। सूर्यास्त से कुछ देर पहले सूर्य देव की पूजा का सारा सामान लेकर घुटने तक पानी में खड़े हो जाते हैं। तत्पश्चात डूबते हुए सूरज को अर्घ्य देकर 5 बार परिक्रमा करते हैं। इस पूजा में खेतों में उपजे सभी नए कंदमूल, अन्न, फल, गन्ना, हल्दी, बड़ा नींबू, पके केले के अलावा कार्तिक मास में उपजे सभी प्रकार के अन्न चढ़ाया जाता है। सारी वस्तुएं बिना काटे टोकरी में लेकर आते हैं। घाट पर नई रुई से नए दीपक जलाए जाते हैं। इसके पश्चात कल सुबह उगते सूर्य को कुसही केराव के दानें अर्पित किए जाएंगे। अधिकतर सारे लोग रात भर घाट पर ही रुकते हैं, किंतु कुछ लोग छठ मैया का गीत गाते हुए सारा सामान घर लाकर देवकरी में रख देते हैं।


छठ पूजा (chhath puja) का चौथे दिन (कार्तिक शुक्ल सप्तमी) को उषा अर्घ्य के नाम से पुकारा जाता है : छठ पूजा के चौथे दिन कि सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य के उदय होने से पहले ही व्रत करने वाले लोग पूजा करने के लिए घाट पर अपने परिवार सहित उपस्थित हो जाते हैं। पिछली पूजा में इस्तेमाल पकवानों की जगह है नई पकवानों को प्रतिस्थापित कर देते हैं किंतु कंदमूल और फल नहीं बदलते। चौथे दिन की पूजा में भी सभी विधि विधान पहले की तरह ही होते हैं फर्क इतना है कि इस समय व्रत करने वाले लोग पानी में पूरब दिशा की ओर मुंह करके खड़े होकर सूर्य देव की पूजा-अर्चना और उपासना करते हैं। तत्पश्चात घाट की पूजा की जाती है। घाट पर उपस्थित सभी लोगों को प्रसाद दिया जाता है और फिर व्रती अपने घर आकर अपने परिवार को प्रसाद देते हैं। व्रती गांव में पीपल के पेड़ जिसको ब्रह्म बाबा भी कहते हैं की पूजा अर्चना करते हैं। पूजा करने के बाद व्रती कच्चे दूध से बना शरबत पीकर और प्रसाद खाकर व्रत का समापन करते हैं जिसे पारण या परना कहते हैं।

छठ पूजा (chhath puja) मैं पुरुष और महिलाएं यह लोकगीत गाते हैं

'केलवा जे फरेला घवद से, ओह पर सुगा मेड़राय

कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए'

सेविले चरण तोहार हे छठी मैया। महिमा तोहर अपार।

उगु न सुरज देव भइलो अरग के बेर।

निंदिया के मातल सुरज अंखियों ने खोले हे।

चार कोना के पोखरवा

हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी।

इस गीत के अनुसार एक तोता जो केले के गुच्छे के पास मंडरा रहा है। तोता केले के गुच्छे पर चोट मारने की कोशिश कर रहा है तो उसे डरा कर बोलते हैं कि तुम्हारी शिकायत हम सूर्यदेव से कर देंगे जो तुम्हें माफ नहीं करेंगे। किंतु तोता केले के गुच्छे को जुठा कर देता है इस कारण सूर्य देव के क्रोध का भागी बन जाता है। उसकी पत्नी सुगनी बहुत घबरा गई और वह कैसे इस वियोग को सहे। तोते ने सूर्य देव की पवित्रता नष्ट कर दी है इसलिए सूर्यदेव भी उसकी कोई सहायता नहीं कर सकते।

केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेड़राय

उ जे खबरी जनइबो अदिक (सूरज) से सुगा लेले जुठिलाए

उ जे मरबो रे सुगवा धनुक से सुगा गिरे मुरछाये

उ जे सुगनी जे रोये ले वियोग से आदित होइ ना सहाय देव होइ ना सहाय

Chhath song
Chhath-song


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